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बेमेल विवाह – सभ्य समाज का कलंक

''स्वर्ण रेणुकाएँ''
''स्वर्ण रेणुकाएँ''
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बेमेल अथवा अनमेल विवाह हमारे समाज में मौजूद अनेक विकट विकृतियों में से एक प्रमुख विकृति है, जो पुरुषवादी इस सोच को भी पुख्ता रूप से इंगित करती है कि स्त्री मात्र भोग्या है … एक जीती-जागती वस्तु जिसकी कोई भावना-संवेदना नहीं, शारीरिक-मानसिक आवश्यकता नहीं, स्वयं का कोई चुनाव नहीं । वैसे तो बेमेल विवाह से प्रभावित स्त्री और पुरुष दोनों का हीं जीवन होता है पर सबसे अधिक पीड़ा ऐसे विवाह में एक औरत हीं सहती है ।
बेमेल विवाह हमारे यहाँ कोई नई बात नहीं … यह सदियों से होता आ रहा है । हमारे समाज में जहाँ कन्या का जन्म लेना हीं अभिशापित माना जाता है और जन्म के साथ हीं उसके साथ भेद भाव का रवैया बरता जाने लगता है वहाँ उसका विवाह भी उसे उसके स्वप्नपुरुष से मिलवाने के लिए नहीं बल्कि अपने सर का बोझ उतारने हेतु किया जाता है। पहले के ज़माने में चार पाँच या इससे भी अधिक पुत्रियों के पिता अपना बोझ उतारने के लिए बड़े आराम से दुगुनी उम्र के पुरुष से अथवा जो भी वर सहूलियत से मिल जाए उसके साथ पुत्री का विवाह कर चिंता मुक्त हो जाते थे ।
बेमेल विवाह की जड़ में अगर जाएँ तो इसका सबसे बड़ा कारण हमारे समाज में व्याप्त घृणित कुरीतियों में से सर्वप्रमुख दहेज़ प्रथा अथवा तिलक है । दहेज़ दानव के कराल मुख को भर पाने में जो पिता सक्षम नहीं होता उसकी पुत्री चाहे कितनी भी योग्य, रूपवती क्यूँ ना हो उसके अनुरूप जीवनसाथी पाने का सपना सपना हीं रह जाता है । इसी कारण से कभी फूल-सी कोमल लड़की किसी खूसट के पल्ले बाँध दी जाती है तो कोई पढ़ी-लिखी सुसंस्कृत लड़की किसी अधकचरी शिक्षा वाले किसी कुंद पुरुष के साथ, कभी अप्सरा-सी सौन्दर्य कला से पूर्ण लड़की किसी रूप के प्यासे अयोग्य पुरुष की जागीर बनती है तो कभी पैसे और दहेज़ के लालच में अपने पुत्र की हीं बलि देकर माता-पिता सुन्दर गुणवान मासूम लड़के के लिए पैसेवाले घर की नकचढ़ी अयोग्य लड़की को ले आते हैं । इतना हीं नहीं लड़का अगर अच्छे घर का, अच्छी संपत्ति और ज़मीन-ज़ायदाद वाला हुआ तो कई बार मानसिक रूप से विकृत, विक्षिप्त अथवा पागल लड़के के साथ भी पिता अपनी बेटी की शादी कर देता है । अब ऐसी स्थिति में उस स्त्री की मनोवेदना को आसानी से समझा जा सकता है ।
बेमेल विवाह से स्त्री और पुरुष दोनों के हीं जीवन में भटकाव की संभावना बनी रहती है । यह भटकाव प्रकृति के नियम के अनुकूल हीं होता है किन्तु सामाजिक नियम के प्रतिकूल होता है । इससे विवाह संस्था का वास्तविक उद्देश्य भी प्रश्नचिन्ह के घेरे में आ खड़ा होता है । विवाह का वास्तविक उद्देश्य समाज में अनुशासन बनाए रखने के लिए है परन्तु बेमेल विवाह से यह अनुशासन भंग होने की पूरी संभावना बनी रहती है, समाज में कालिमा फैलती है । विवाह का दूसरा उद्देश्य मानव प्रजाति की वंशबेल को आगे बढ़ाते हुए समाज को अच्छी संतति देना है । बेमेल विवाह यहाँ भी असफ़ल रहता है । पति-पत्नी के बीच कटुता, वैमनस्य, और अविश्वास का संबंध जहाँ होगा उस घर के घुटन भरे गलीज़ वातावरण में किसी बच्चे का बचपन कैसा होगा इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है । कैसे बनेंगे ऐसे बच्चे के संस्कार ?
बेमेल विवाह के स्तर :-
(1) उम्र में असमानता
(2) शारीरिक स्तर पर असमानता
(3) मानसिक स्तर में असमानता
(4) दोनों घरों की हैसियत में ज़मीन-आसमान का फ़र्क
(1) उम्र में असमानता :- प्रचुर दहेज़ दे पाने में अक्षम पिता कई बार अच्छा कमानेवाले कन्या से बहुत अधिक उम्र के पुरुष से अपनी लड़की का विवाह कर देते हैं । लड़की जबतक इस संबंध को समझने के योग्य होती है उसका सम्पूर्ण जीवन बरबाद हो चुका होता है । बूढ़े पति के साथ वैवाहिक जीवन का सुख, प्रेम का खिलता अलौकिक प्रसून वह कभी अनुभूत हीं नहीं कर पाती । अपूर्ण आकांक्षाओं के साथ अपने भाग्य को कोसती कुंठाग्रस्त जीवन जीने के अतिरिक्त उसके पास और कोई विकल्प नहीं होता । जिसका मानसिक सामर्थ्य साथ छोड़ देता वह या तो अवैध संबंध के काँटों में फँसती है या विक्षिप्त हो जाती है ।
(2) शारीरिक स्तर पर असमानता :- कई बार लड़की के रूप सौन्दर्य को देखकर कम दहेज़ या बिना दहेज़ के लड़केवाले रिश्ते के लिए तैयार हो जाते हैं । माँ-बाप लड़की की भावनाओं को दरकिनार कर ख़ुशी-ख़ुशी बदसूरत लड़के से यह रिश्ता करते हैं पर बाद में पत्नी का यही सौन्दर्य उसके लिए अभिशाप बन जाता है । पत्नी को कोई प्रशंसाभरी नज़र से भी देखे तो पति को शक़ होता है । उसका किसी के साथ हँसना-बोलना, कहीं आना-जाना तक दूभर कर दिया जाता है । बदसूरत पति सामान्य-सी बात या घटना को भी विकृत दृष्टिकोण से देखता है और शक़ और अविश्वास से जकड़ा संबंध दम तोड़ देता है ।
(3) मानसिक स्तर में असमानता :- कई बार लड़का अगर अच्छे घर का, अच्छी संपत्ति और ज़मीन-ज़ायदाद वाला हुआ तो मानसिक रूप से विकृत, विक्षिप्त अथवा पागल लड़के के साथ भी पिता अपनी बेटी की शादी कर देता है । यही बात कभी-कभी दूसरी तरफ़ भी लागू होती है, ज़मीन-जायदाद और पैसों के लालच में माता-पिता सुयोग्य पुत्र के लिए बड़े घर की सनकी और विक्षिप्त लड़की ले आते हैं ।
(4) दोनों घरों की हैसियत में ज़मीन-आसमान का फ़र्क :- ज्यादातर लोग इस बात पर अधिक ध्यान नहीं देते लेकिन दोनों घरों की हैसियत में फ़र्क से लड़का और लड़की की मानसिकता भी अलग-अलग दिशा में काम करती है और उनका आपसी तालमेल कभी नहीं बन पाता । ऐसे अनुबंध की परिणति फ़िर अलगाव हीं होती है ।
जागरूक होना होगा माता-पिता को :-
बेटियों के भी सपने होते हैं, अरमान होते हैं … उनकी संवेदनाओं को समझें, उनके भविष्य की सोचें ।
– बेमेल विवाह स्त्री के ऊपर बर्बरता है । इस मध्ययुगीन बर्बरता से बाहर आयें, मानसिकता बदलें । समाज को दूषित करने वाली ऐसी घृणित परंपरा को ख़त्म करने में सहयोग दें ।
– चंद पैसों अथवा केवल स्टेटस सिम्बल की खातिर अपनों के सुख की बलि ना लें ।
– आपसी विश्वास और सहिष्णुता हीं किसी रिश्ते की बुनियाद होते हैं । सुन्दर पुत्री को जानबूझकर कुरूप संबंधों की अग्नि में ना झोंकें ।
– दहेज़ प्रथा को ख़त्म कर स्वस्थ्य समाज का निर्माण करें ।
स्त्रियों को भी आगे आना होगा । उसे स्वयं भी वर्जनाओं की डोर काटनी होगी ।
बेमेल विवाह से बचना होगा
कुछ बातों का रखें ख्याल :-
(1) समान पारिवारिक स्तर में हीं करें विवाह । दूसरों के धन का लालच छोड़कर स्वयं अपना जीवन पूर्ण और सुन्दर बनाने की सोचें ।
(2) पति-पत्नी के बीच उम्र का असामान्य अंतर वैवाहिक संबंध को प्रभावित करता है ।
(3) शारीरिक स्तर पर असमानता (एक साथी बेहद ख़ूबसूरत दूसरा कम सुन्दर अथवा बदसूरत) कुंठित संबंध का कारण बनती है । कभी भी शारीरिक कमियों को छुपाकर विवाह ना करें ।
(4) शैक्षिक समानता का रखिये ख़याल । दोनों समान रूप से शिक्षित होंगे तो वैचारिक असमानता का प्रतिशत नगण्य होगा ।
(5) जबतक युवा वर्ग स्वयं जागरूक नहीं होगा यह दूषित प्रथा पनपती बढ़ती रहेगी ।
(6) यह एक जगविदित सच्चाई है कि जबतक परिस्थितियाँ मजबूर ना कर दें स्त्री बेवफ़ाई नहीं करती । वह अपने बच्चे और परिवार की मर्यादा के खातिर सहनशीलता के चरम पर जाकर सबकुछ सहती है किन्तु जब उसे पति से संतुष्टिदायक प्रेम और आदर नहीं मिलता तब उसकी सहनशक्ति का अंत होता है और वह कुंठित होकर कोई भी सीमा तोड़ सकती है, कोई भी रास्ता अख्तियार कर सकती है । तब घर परिवार और आपके समाज के नियम सब विखंडित हो जाएँगे अतः वक़्त रहते संभल जाएँ
और अंत में,
बेमेल विवाह की परिणति तलाक़, हिंसा, कुंठा, आत्महत्या, विक्षिप्तता, आपसी कटुता समेत अपूर्ण दाम्पत्य की पीड़ा के रूप में होती है । जिन लोगों की सहनशीलता अत्यंत प्रबल होती है वे हीं जीवनभर इस संबंध को ढ़ोते हुए आखिर में अपने अधूरे जीवन को चिता तक घसीट ले जाते हैं ।
– कंचन पाठक.

बेमेल अथवा अनमेल विवाह हमारे समाज में मौजूद अनेक विकट विकृतियों में से एक प्रमुख विकृति है, जो पुरुषवादी इस सोच को भी पुख्ता रूप से इंगित करती है कि स्त्री मात्र भोग्या है … एक जीती-जागती वस्तु जिसकी कोई भावना-संवेदना नहीं, शारीरिक-मानसिक आवश्यकता नहीं, स्वयं का कोई चुनाव नहीं । वैसे तो बेमेल विवाह से प्रभावित स्त्री और पुरुष दोनों का हीं जीवन होता है पर सबसे अधिक पीड़ा ऐसे विवाह में एक औरत हीं सहती है ।

बेमेल विवाह हमारे यहाँ कोई नई बात नहीं … यह सदियों से होता आ रहा है । हमारे समाज में जहाँ कन्या का जन्म लेना हीं अभिशापित माना जाता है और जन्म के साथ हीं उसके साथ भेद भाव का रवैया बरता जाने लगता है वहाँ उसका विवाह भी उसे उसके स्वप्नपुरुष से मिलवाने के लिए नहीं बल्कि अपने सर का बोझ उतारने हेतु किया जाता है। पहले के ज़माने में चार पाँच या इससे भी अधिक पुत्रियों के पिता अपना बोझ उतारने के लिए बड़े आराम से दुगुनी उम्र के पुरुष से अथवा जो भी वर सहूलियत से मिल जाए उसके साथ पुत्री का विवाह कर चिंता मुक्त हो जाते थे ।

बेमेल विवाह की जड़ में अगर जाएँ तो इसका सबसे बड़ा कारण हमारे समाज में व्याप्त घृणित कुरीतियों में से सर्वप्रमुख दहेज़ प्रथा अथवा तिलक है । दहेज़ दानव के कराल मुख को भर पाने में जो पिता सक्षम नहीं होता उसकी पुत्री चाहे कितनी भी योग्य, रूपवती क्यूँ ना हो उसके अनुरूप जीवनसाथी पाने का सपना सपना हीं रह जाता है । इसी कारण से कभी फूल-सी कोमल लड़की किसी खूसट के पल्ले बाँध दी जाती है तो कोई पढ़ी-लिखी सुसंस्कृत लड़की किसी अधकचरी शिक्षा वाले किसी कुंद पुरुष के साथ, कभी अप्सरा-सी सौन्दर्य कला से पूर्ण लड़की किसी रूप के प्यासे अयोग्य पुरुष की जागीर बनती है तो कभी पैसे और दहेज़ के लालच में अपने पुत्र की हीं बलि देकर माता-पिता सुन्दर गुणवान मासूम लड़के के लिए पैसेवाले घर की नकचढ़ी अयोग्य लड़की को ले आते हैं । इतना हीं नहीं लड़का अगर अच्छे घर का, अच्छी संपत्ति और ज़मीन-ज़ायदाद वाला हुआ तो कई बार मानसिक रूप से विकृत, विक्षिप्त अथवा पागल लड़के के साथ भी पिता अपनी बेटी की शादी कर देता है । अब ऐसी स्थिति में उस स्त्री की मनोवेदना को आसानी से समझा जा सकता है ।

बेमेल विवाह से स्त्री और पुरुष दोनों के हीं जीवन में भटकाव की संभावना बनी रहती है । यह भटकाव प्रकृति के नियम के अनुकूल हीं होता है किन्तु सामाजिक नियम के प्रतिकूल होता है । इससे विवाह संस्था का वास्तविक उद्देश्य भी प्रश्नचिन्ह के घेरे में आ खड़ा होता है । विवाह का वास्तविक उद्देश्य समाज में अनुशासन बनाए रखने के लिए है परन्तु बेमेल विवाह से यह अनुशासन भंग होने की पूरी संभावना बनी रहती है, समाज में कालिमा फैलती है । विवाह का दूसरा उद्देश्य मानव प्रजाति की वंशबेल को आगे बढ़ाते हुए समाज को अच्छी संतति देना है । बेमेल विवाह यहाँ भी असफ़ल रहता है । पति-पत्नी के बीच कटुता, वैमनस्य, और अविश्वास का संबंध जहाँ होगा उस घर के घुटन भरे गलीज़ वातावरण में किसी बच्चे का बचपन कैसा होगा इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है । कैसे बनेंगे ऐसे बच्चे के संस्कार ?

बेमेल विवाह के स्तर :-

(1) उम्र में असमानता

(2) शारीरिक स्तर पर असमानता

(3) मानसिक स्तर में असमानता

(4) दोनों घरों की हैसियत में ज़मीन-आसमान का फ़र्क

(1) उम्र में असमानता :- प्रचुर दहेज़ दे पाने में अक्षम पिता कई बार अच्छा कमानेवाले कन्या से बहुत अधिक उम्र के पुरुष से अपनी लड़की का विवाह कर देते हैं । लड़की जबतक इस संबंध को समझने के योग्य होती है उसका सम्पूर्ण जीवन बरबाद हो चुका होता है । बूढ़े पति के साथ वैवाहिक जीवन का सुख, प्रेम का खिलता अलौकिक प्रसून वह कभी अनुभूत हीं नहीं कर पाती । अपूर्ण आकांक्षाओं के साथ अपने भाग्य को कोसती कुंठाग्रस्त जीवन जीने के अतिरिक्त उसके पास और कोई विकल्प नहीं होता । जिसका मानसिक सामर्थ्य साथ छोड़ देता वह या तो अवैध संबंध के काँटों में फँसती है या विक्षिप्त हो जाती है ।

(2) शारीरिक स्तर पर असमानता :- कई बार लड़की के रूप सौन्दर्य को देखकर कम दहेज़ या बिना दहेज़ के लड़केवाले रिश्ते के लिए तैयार हो जाते हैं । माँ-बाप लड़की की भावनाओं को दरकिनार कर ख़ुशी-ख़ुशी बदसूरत लड़के से यह रिश्ता करते हैं पर बाद में पत्नी का यही सौन्दर्य उसके लिए अभिशाप बन जाता है । पत्नी को कोई प्रशंसाभरी नज़र से भी देखे तो पति को शक़ होता है । उसका किसी के साथ हँसना-बोलना, कहीं आना-जाना तक दूभर कर दिया जाता है । बदसूरत पति सामान्य-सी बात या घटना को भी विकृत दृष्टिकोण से देखता है और शक़ और अविश्वास से जकड़ा संबंध दम तोड़ देता है ।

(3) मानसिक स्तर में असमानता :- कई बार लड़का अगर अच्छे घर का, अच्छी संपत्ति और ज़मीन-ज़ायदाद वाला हुआ तो मानसिक रूप से विकृत, विक्षिप्त अथवा पागल लड़के के साथ भी पिता अपनी बेटी की शादी कर देता है । यही बात कभी-कभी दूसरी तरफ़ भी लागू होती है, ज़मीन-जायदाद और पैसों के लालच में माता-पिता सुयोग्य पुत्र के लिए बड़े घर की सनकी और विक्षिप्त लड़की ले आते हैं ।

(4) दोनों घरों की हैसियत में ज़मीन-आसमान का फ़र्क :- ज्यादातर लोग इस बात पर अधिक ध्यान नहीं देते लेकिन दोनों घरों की हैसियत में फ़र्क से लड़का और लड़की की मानसिकता भी अलग-अलग दिशा में काम करती है और उनका आपसी तालमेल कभी नहीं बन पाता । ऐसे अनुबंध की परिणति फ़िर अलगाव हीं होती है ।

जागरूक होना होगा माता-पिता को :-

बेटियों के भी सपने होते हैं, अरमान होते हैं … उनकी संवेदनाओं को समझें, उनके भविष्य की सोचें ।

– बेमेल विवाह स्त्री के ऊपर बर्बरता है । इस मध्ययुगीन बर्बरता से बाहर आयें, मानसिकता बदलें । समाज को दूषित करने वाली ऐसी घृणित परंपरा को ख़त्म करने में सहयोग दें ।

– चंद पैसों अथवा केवल स्टेटस सिम्बल की खातिर अपनों के सुख की बलि ना लें ।

– आपसी विश्वास और सहिष्णुता हीं किसी रिश्ते की बुनियाद होते हैं । सुन्दर पुत्री को जानबूझकर कुरूप संबंधों की अग्नि में ना झोंकें ।

– दहेज़ प्रथा को ख़त्म कर स्वस्थ्य समाज का निर्माण करें ।

स्त्रियों को भी आगे आना होगा । उसे स्वयं भी वर्जनाओं की डोर काटनी होगी ।

बेमेल विवाह से बचना होगा

कुछ बातों का रखें ख्याल :-

(1) समान पारिवारिक स्तर में हीं करें विवाह । दूसरों के धन का लालच छोड़कर स्वयं अपना जीवन पूर्ण और सुन्दर बनाने की सोचें ।

(2) पति-पत्नी के बीच उम्र का असामान्य अंतर वैवाहिक संबंध को प्रभावित करता है ।

(3) शारीरिक स्तर पर असमानता (एक साथी बेहद ख़ूबसूरत दूसरा कम सुन्दर अथवा बदसूरत) कुंठित संबंध का कारण बनती है । कभी भी शारीरिक कमियों को छुपाकर विवाह ना करें ।

(4) शैक्षिक समानता का रखिये ख़याल । दोनों समान रूप से शिक्षित होंगे तो वैचारिक असमानता का प्रतिशत नगण्य होगा ।

(5) जबतक युवा वर्ग स्वयं जागरूक नहीं होगा यह दूषित प्रथा पनपती बढ़ती रहेगी ।

(6) यह एक जगविदित सच्चाई है कि जबतक परिस्थितियाँ मजबूर ना कर दें स्त्री बेवफ़ाई नहीं करती । वह अपने बच्चे और परिवार की मर्यादा के खातिर सहनशीलता के चरम पर जाकर सबकुछ सहती है किन्तु जब उसे पति से संतुष्टिदायक प्रेम और आदर नहीं मिलता तब उसकी सहनशक्ति का अंत होता है और वह कुंठित होकर कोई भी सीमा तोड़ सकती है, कोई भी रास्ता अख्तियार कर सकती है । तब घर परिवार और आपके समाज के नियम सब विखंडित हो जाएँगे अतः वक़्त रहते संभल जाएँ

और अंत में,

बेमेल विवाह की परिणति तलाक़, हिंसा, कुंठा, आत्महत्या, विक्षिप्तता, आपसी कटुता समेत अपूर्ण दाम्पत्य की पीड़ा के रूप में होती है । जिन लोगों की सहनशीलता अत्यंत प्रबल होती है वे हीं जीवनभर इस संबंध को ढ़ोते हुए आखिर में अपने अधूरे जीवन को चिता तक घसीट ले जाते हैं ।

-कंचन पाठक.

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